Tuesday, June 3, 2025

ओ रे आम तू आम रहे

तू आम है, पर आम नही

हर मौसम की तू शाम नहीं 

कभी खट्टा, कभी मीठा सा,

पहले प्यार में लिखे गीत सा 

गालों पर तेरे ये जो शोख़ी है 

मिठास में तेरी, ये जो मदहोशी है 

तेरे केसरी कतरों से, तेरे नाज़ुक नखरों  से 

तेरे सिंदूरी हो जाने से 

तेरे मलीहाबाद और बनारस से चले आने से 

गर्मियों की सुबहें, गर्मियों की शामें यादगार हैं 

ओ रे आम तू आम रहे 

तेरे बाग़ तेरे बग़ीचे 

तेरी नस्लें तेरी फसलें गुलज़ार रहें 

के तू आम है 

पर आम नहीं 

और सुन भाई आम 

तू ख़ास रहे पर आम रहे! 

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