Thursday, May 16, 2019

ख्वाहिशें

ख़्वाहिश- ख्वाहिश फंदे दर फंदे बुनती रही,
एक पूरी हो तो दूजी का सिरा चुनती रही

चुक गया मान कर, फ़ेंक दिया था जो टुकड़ा हमने कभी,
नन्हीं ज़िद्दी ख़्वाहिशों ने खींच दिया उस पेंसिल से पूरा आकाश

आगाज़ ख्वाहिशों का सभी की एकसा होता नहीं,
किसी को मिलती बंदिशों के साथ, किसी को उड़ान के परों पर

जो पूरी हुई ना कुछ ख्वाहिशें, तो उदासियों ने घेरा है हमें
जो पूरी हो गयी हैं उनके लिए दिल बल्लियों उछलता था कभी

ख्वाहिशों का पेंचीदा सा कुछ यों अफ़साना है,
ना पूरी हो तो रतजगे, जो पूरी हो तो नींदों को चले जाना है 

Sunday, May 12, 2019

लौट आना प्रेम का


प्रेम को पाना कितना सुर- ताल से प्रतिपादित है
संगीतमयी, रोम- रोम को झंकृत करने वाला,
जैसे सारे राग एक साथ बजने लगे हों

.... और उतना ही बेतरतीब है प्रेम का बिखरना
कोई संगीत नहीं, कोई शब्द नहीं |
बस शून्य सा खालीपन, शोर मचाता हुआ
बिना किसी पूर्वाग्रह के आकर बसने वाला
 
.... छोड़ आना इस खालीपन को ,
एक सुबह सैर करने जाओ तो,
ले आना साथ चेहरे पर सुबह की ओस
चिड़ियों का चहकना, दूब  की नमीं
पैरों में चुभ रही रेत को धो देना
और नल से गिरते पानी की टुपुर- टापुर
सहेज लाना साथ
पहन आना किसी अनजान की हँसी कानों में
और ध्यान से सुनना अपने बढ़ते हुए क़दमों की आवाज़

.....सुर- ताल का वापस लौट आना इतना भी मुश्किल नहीं