ख़्वाबीदा से उस मक़ाम को पा गए
पर उम्मीदें हम से मुसलसल बनी रहीं
संग-तराशी खुद की इस इंतहा तक की हमने
कि मुस्कान इस बुत की अब हमसे मिलती नहीं
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