आसां इतना भी नहीं है इस मर्ज़ से शफा पाना
ना ये वो मर्ज़ है जो बस इक बार होता है
ना ये वो नासमझी है जो समझदारों से नहीं होती
ये जो मोहब्बत है ना बस हो जाती है
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