Tuesday, May 24, 2011

मेरी बेटी के लिए ......


अलंकारों को अलंकृत करती ,
तुझसे ही तो अलंकारों की परिभाषा है
मन-उपवन में सुमन सी खिली तू ,
तुझसे जीवन में कितनी अभिलाषा है
मेरी अपूर्णता को अपनी पूर्णता से पूर्ण करती ,
मेरे पुरातन स्वप्नों की तू नवीन गाथा है
अपनी किलकारी से घर आँगन भरती,
तुझसे ही जीवन सरगम का सा,नी, धा, पा है
मधु-सरिता सी चंचल हो बहती ,
तुझमें ही मेरे बचपन का खाका है
रागों में मेघों के मल्हार सी ,
वर्षा ऋतु की पहली फुहार सी ,
ओस की बूँद की मनुहार सी ,
मंदिर में नुपुर की झंकार सी ,
आनंद वृक्ष की नवीनतम पल्लवी सी ,
मान्या, तू स्वयं एक त्यौहार है
बेटी बन कर तेरा आगमन ,
मेरे वात्सल्य को पुनः अर्थ दे जाता है

Thursday, May 19, 2011

चवन्नी नहीं रही !




छम से छम- छम छमकती चवन्नी,
चम से चम -चम चमकती चवन्नी ,
अम्मा के बटुए की जान चवन्नी ,
मिट्टी की गुल्लक की शान चवन्नी ,
छोटू का गुब्बारा लाती चवन्नी ,
गोले की टॉफी की मिठास चवन्नी,
इमली की खटास चवन्नी ,
यहाँ वहाँ घूमती घुमक्कड़ चवन्नी,
बन्दर- बंदरिया का खेल दिखाती चवन्नी,
अटरिया के मेले की सैर कराती चवन्नी
भैया के बल्ले से घुमकती चवन्नी ,
दीदी की आँखों का काजल बनती चवन्नी ,
मंदिर में चढ़ावा चढी चवन्नी ,
छुट्टे करवाने को सब्जी मण्डी में लड़ी चवन्नी ,
नुक्कड़ के भिखारी की झोली में गिरी चवन्नी ,
दुआओं का भण्डार चवन्नी ,
आवारा सी ना ठहरती चवन्नी

गोलू के गले में कितनी बार फँसी चवन्नी
बड़ी मुसीबत थी उससे ,
..अच्छा है नहीं रही ,
.....पर थी तो बड़ी गोल- मटोल ,
चमकती भी थी कभी- कभी ,
अचानक कैसे चली गयी,
.................. museum में दिखेगी क्या ?