Tuesday, October 27, 2009
ओस के मोती
शरद पूर्णिमा की उस रात ने
जो ओस के मोतियों का हार
पतझड़ के पीले पातों को उपहार दिया था,
पश्चिमी हवा के उस सर्द झोंके ने तोड़ दिया है|
कुछ मोती बूटों के बीच अटक गए हैं
तुम वहाँ जाओ तो सहेज आना उन्हें |
नहीं तो कल धूप की चूनर में छुपने की कोशिश करेंगी
और नटखट सूरज,
उनको चांदी का वर्क लगी इलायची समझ खा जाएगा |
Thursday, October 22, 2009
नया स्वेटर
सडकों के ताने-बाने से शहर बुन दिया ,
रोशनी के चमकते धागे चुन -चुन
कसीदाकारी कर उसे नया रंग दिया |
गिरहें डाळ- डाळ राहों की,
इस कोने से वो कोना जोङा |
फंदे गिन, सलाइयों पर चढ़ा,
शहर के गले-बाजू सब बुन दिए |
आङी-तिरछी, ऊँची-नीची इमारतें बना,
इस ताने-बाने को नए दस्तूर का नाम दिया |
और फिर .........
सरपट दौङती गाङियों से
इस ताने-बाने को धड़कन भी दी |
लगता है
ऊपर वाले का बनाया बेंतहा खूबसूरत स्वेटर
कुछ ज्यादा ही हरा था ,
इसलिए इंसान ने उधेड़ दिया, नया बुनने के लिए |
बस थोड़ी ऊन रख ली है
नये स्वेटर पर हरे बूटे काढ़ने के लिए |
इस नये को पहनने की होड़ लगी है
और ये फैलता जा रहा है फंदा-दर-फंदा |
Tuesday, October 20, 2009
मीठे ख्वाब
आज सुबह उठी तो कमरे में भीनी सी खुशबू थी ,
चूल्हे की तपत से फर्श भी गुनगुना सा लगा,
आस-पास देखा कारण समझ ना आया
कुर्सी पर बैठी तो फिर आँख लग गयी
और जब उठी तो पेट भरा सा लगा,
हाँ! शायद
आज फिर ख्वाब में मैंने माँ के हाथ से खाना खाया
ऐसे मीठे ख्वाब मुझे अक्सर आते हैं
चूल्हे की तपत से फर्श भी गुनगुना सा लगा,
आस-पास देखा कारण समझ ना आया
कुर्सी पर बैठी तो फिर आँख लग गयी
और जब उठी तो पेट भरा सा लगा,
हाँ! शायद
आज फिर ख्वाब में मैंने माँ के हाथ से खाना खाया
ऐसे मीठे ख्वाब मुझे अक्सर आते हैं
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