Saturday, February 23, 2019

वीर भूमि












लाल चूड़ियों से सजी कलाई, 
अंतिम विदा भी ना कह पाई ,

दूध पीता  नौ- निहाल बैठना सीखा तो ,
पिता के काँधे की सवारी मिल न पाई 

छड़ी टूटी, आँख धुँधली, पर हिम्मत न टूटी 
बूढ़े कन्धों को इस उम्र में भी बेफिक्री मिल न पाई

 लोरियाँ धमाकों के बीच सिसकती  रहीं 
राह ताक -ताक  सूनी ममता पथराई 

वीर की परिणिता बनी जो,
उस वीराँगना का सिंगार अमिट 

शौर्य- पथ पर प्रशस्त करे जो पूत को, 
कोर में आंसू छुपाए उस माँ का साहस अद्वित  

सीना ताने सलामी दे जो तिरंगे में लिपटे लाल को ,
उस पिता का धीर देश की प्राचीर  चिन्हित 

ध्यान रहे अब ! 
व्यापार न कोई  कर पाए, शहीदों के बलिदान पर 
बिलख रहा बचपन जो, मिले उसे सम्मान हर , 
काश! बाँटने की राजनीति ख़त्म हो ये,
और जोड़ने की नयी रीत चलन में चल जाए 

पत्थरों और धमाकों का शोर खत्म हो वादियों में,
शिकारे चलें और गुलमोहर खिलखिलायें|
जय हिन्द इधर से बोलो तो उधर वादियोँ  से भी हिन्दोस्तान ज़िंदाबाद की आवाज़ आये

वो गाँव मेरा
















भरम जुड़  गया इस शहर से
पर मन तो  अब भी उस  गाँव ही में है
ठिकाना बना लिया इस शहर में हमने
पर घर तो अब भी उस गाँव ही में है
माना मंज़िलें मिली इस शहर में,
पर रास्ते तो अब भी उस गाँव ही में है
पा गए ओहदे, जान गए सलीके ,
पर मासूमियत वो मेरी अब भी उस गाँव ही में है
मन बहलाने का साज़ो- सामान जोड़ लिया है खूब यहां
पर वो कागज़ की नाव मेरी अब भी उस गाँव ही में है
भीड़ का हिस्सा बन  गए इस शहर में हम
हैं जिसकी आँख का पानी वो अब भी उस गाँव ही में है
छाँव तलाशते रहे हम यहाँ - वहाँ,
राह ताकता बरगद वो मेरा अब भी उस गाँव ही में है