Saturday, July 6, 2019

पॉलिश हुए जूते



स्कूल के जूतों पर 
ब्रश लोक गीत की थाप बजाती
दायें से बाएं, फिर घूम कर बाएँ  से दाएं 
आती जाती परेड लगाती 
चेरी ब्लॉसम की महक 
कुछ छोड़ आती और कुछ समेट लाती,

उफ़! ये जूते झक्क सफ़ेद मोजों पर चढ़े,
कुछ अड़े- अड़े से, कुछ बड़े बड़े से,
टकटकाते से हर आते-जाते को आईना दिखलाते 
इतराते कदम बढ़ाते और आगे बढ़ते  जाते 

फुटबाल को ललचायी आँखों से निहारते,
आज नहीं कल इतवार का ढाँढस बँधाते,
उफ़! ये जूते सफ़ेद मोजों पर ही 
चढ़ी धूल को रगड़ कर, खोई चमक लौटा लाते 
दाएँ, बाएँ, आगे बढ़ने, पीछे छोड़ने की जुगत लगाते 
के ये पॉलिश हुए जूते, किस्सागो के किस्सों से 
बचपन की धूप बुला लाते और इतराते, टकटकाते जाते