Wednesday, November 24, 2010

बेचारा चाँद !


आँखों के नीचे काले घेरे लिए,
लो आज फिर उग गया है चाँद
कल रात की थकन उतरी नहीं,
देखो आज फिर काम पर लग गया है चाँद
उजले दिन पर स्याह दवात उलट,
...जब सूरज बेफिक्री की नींद सो गया,
रात को रोशन रखने को,
चाँदनी ओढ़े झूठ-मूठ मुस्कुरा रहा है चाँद
बिखरी मुहब्बत के टूटे टुकडो को
महखाने की राह दिखाए जा रहा है चाँद
जाने कितने ख़्वाबों का गवाह बना,सदियों से,
और टूटे ख्वाबों की चुभन जिये जा रहा है चाँद