Tuesday, July 20, 2010

गुब्बारे सी हँसी


दबी सी सहमी सी रही कभी,
पेट में ही फुदकती रही कभी,
उछल कर कभी गले तक आयी,
भरसक कोशिश कर जो हमने दबायी,
चौकड़ी डाले फिर भी वहीं विराजित पायी
रुकी ना फिर, गुब्बारे सी फूटी ,
देखो ये आयी, वो आयी ,
इस बार हँसी रोके ना रुक पायी