Tuesday, November 6, 2012

प्रकृति की अनूठी मुस्कान|



पिघल रहा था वो बादल,

निचोङ अपने हर अंश को
,
बरखा की निखरी सी बूंदों में|
ढल रहा था उसका अस्तित्व,

उनींदी सी कोमल कलियों का,


यौवन सँवारने में|

जी उठे थे सूखे पात,

सौन्धी हो गयी थी मिट्टी ,


बुझा अपनी प्यास भीगी बरसात में|

असीमित ,निर्बाध, गगन को,

जब फैला हथेली देख रही थी मैं ,


लदी थी वो बारिश की बूँदो से|
बून्दें जो थी जीवन बादल का,

बून्दें जो हैं जीवन अब सूखे पातों का,


बन्द हैं मेरी मुट्ठी में|

अब जब आसमान रंगा है,

इन्द्रधनुष के सप्तरंगों में,


वहीं ठगी सी खङी हूँ मैं,इस सोच में …

.
क्या है इनका अस्तित्व,


बादल, बूँद,सूखे पात , फूल का रंग,


झरने का यौवन ,या चातक पक्षी की प्यास……
…..या सिर्फ मौसम की करवट

…..या प्रकृति की अनूठी मुस्कान|

Monday, November 5, 2012

खुशियों की धूप


सूरज के घर जाकर ,
ले आये हम उजाला |
 पंछियों से पूछा  तिनकों का पता,
अपना बसेरा  बनाने के लिये |
की  चाँद की चिरौरी,
चाँदनी को घर बुलाने के लिये|
तकी सितारोँ की राह ,
अपना घरौंदा  सजाने के लिये |
चले  थकन की पगडण्डियों पर,
चौबारे के बरगद की छाँव पाने   के लिये |
गये किरणों के रथ पर चढ,
आँगन में खुशियों की धूप लाने के लिये |
अब दो गुलाब खिले हैं ,
मेरे आँगन में|
सूरज सुबह ही उजाला पँहुचा जाता है उन्हें ,
पंछी सुबह-शाम बतियाते हैं उनसे ,
चाँद मुस्काता  है देखकर उन्हें ,
चाँदनी  लोरी सुनाती  है हर रात ,
बरगद हँस- हँस के दोहरा हुआ जाता है ,
किरणों का रथ सवारी कराता है उन्हें ,
और खुशियों की धूप से महक उठते हैं ,
मेरे दोनों गुलाब |
मैं देती हूँ उन्हें बस खाद-पानी 
और वो बुला लाते हैं,
सूरज, चाँद , सितारे ,
बरगद की छाँव ,
पंछियों का चहकना ,
..... और खुशियों की धूप 

Saturday, November 3, 2012

मच्छरजी की दिल्लगी


हमारे एक मित्र Entomologist हैं, अर्थात कीट-विज्ञान शास्त्री|एक दिन उनसे मिलने के लिये हम उनकी लैबोरेट्री  पँहुच गये| डेंगू जैसी प्राणघातक  बीमारी फैलाने वाले जीव के विषय में जानने की इच्छा प्रकट करने पर उन्होने हमें एक किस्सा सुना कर टरका दिया| हमने सोचा ज्ञान नही बाँट सकते तो क्या वो किस्सा ही आपको सुना देते हैं|

एक स्लाइड पर एक मच्छर की निष्प्राण काया को रख हमारे मित्र जाने किस ख्याल में डूबे हुए थे|
हमने उन्हे चेताया , अरे भाया, इस तुच्छ मच्छर ने सारे भारत में है आतंक फैलाया, इतने पर भी उन्हें कुछ समझ में ना आया, और उन्होने उस मच्छर का दुखङा हमें कुछ यों सुनाया, जिसे सुन हमें भी बेचारे मच्छर की किस्मत पर रोना आया| 
तो किस्सा कुछ यों है–

कालेज में मलेरिया ,डेंगू ,कालेरा जब पढा रहे थे लेक्चरार |
उसी समय बेचारे मच्छरजी की मक्खीजी से आँखें हो गयी चार |
इश्क का चढा तेज़ बुखार और दोनो हो गये इक-दूजे के बीमार |
डेटिंग पर अब कहाँ जाया जाए, इस पर किया दोनो ने विचार |
मुनिसिपल्टी के नाले या,पार्क के गड्ढो में किया जाये विहार |
मैकडोनल्ड के कच्ररेदान में खाया, प्रेम से फास्ट-फूड का आहार |
सोचा रिश्ता अटूट हो जाए, अब ये, विवाह को बना आधार|
कुण्डली मिली तो, झट,मच्छर पण्डित को प्रकट किया आभार |
शुभ मुहूर्त की तारीख तय हुई,और दिन तय हुआ सोमवार |
सज-धज कर आयी मक्खी,तन- मन से उसने किया श्रृंगार |
महक रही थी वो ऐसे, जैसे साथ लायी हो अपने नयी बहार |
अँखियों में लक्मे का काजल लगा,छोड़े तीर उसने कई हज़ार |
पर हाय रे किस्मत! पास आते ही हुए धराशायी मच्छर जी हमार |
खोज-बीन की तो पता चला हमको इसका विचित्र कारण यार |
डिओ ना मिला तो मक्खीजी ने ओडोमास क्रीम लगाई बार-बार |
और महकने के लिये,बेचारे मच्छरजी पर किया  अनचाहा वार |
इसलिये कहत हैं बछुवा ,काहू को ना चढे ऐसन प्रीत का बुखार |
बेचारे मच्छरवा की खातिर रोवत है दिल बार-बार, ज़ार-ज़ार हमार |



Friday, November 2, 2012

...........पुरानी किताबों के पन्ने


उम्र के बोझ तले, पीले सांचे में ढले ,
पन्ने कुछ अधखुले, आज यों खुले ,
सूखे गुलाबों की बासी खुशबू समेटे ,
वक़्त से पिछड़, कल को आज में लपेटे,
कागज़ के तुड़े-मुड़े पुर्जे छुपाये हुये,
जाने कितने राज़ सीने में दबाये हुये,
भीगे मौसमों की स्याही फैलाये हुये,
अश्कों के निशान, गालों पर सजाये हुये,
कनखियों की आड़ बनाए हुये ,
कुछ बिखरी ज़ुल्फ़ें चुराये हुये,
उसी छुवन का अहसास  दिलाते हुये,
उसी जनवरी सा कँपाते हुये
भूली-बीती याद दोहराए गये ,
शब्द -शब्द ग़ज़ल बनाए गये ,
बरसों बाद खुले कुछ यों ,
.... पुरानी किताबों के पन्ने |