Tuesday, November 6, 2012

प्रकृति की अनूठी मुस्कान|



पिघल रहा था वो बादल,

निचोङ अपने हर अंश को
,
बरखा की निखरी सी बूंदों में|
ढल रहा था उसका अस्तित्व,

उनींदी सी कोमल कलियों का,


यौवन सँवारने में|

जी उठे थे सूखे पात,

सौन्धी हो गयी थी मिट्टी ,


बुझा अपनी प्यास भीगी बरसात में|

असीमित ,निर्बाध, गगन को,

जब फैला हथेली देख रही थी मैं ,


लदी थी वो बारिश की बूँदो से|
बून्दें जो थी जीवन बादल का,

बून्दें जो हैं जीवन अब सूखे पातों का,


बन्द हैं मेरी मुट्ठी में|

अब जब आसमान रंगा है,

इन्द्रधनुष के सप्तरंगों में,


वहीं ठगी सी खङी हूँ मैं,इस सोच में …

.
क्या है इनका अस्तित्व,


बादल, बूँद,सूखे पात , फूल का रंग,


झरने का यौवन ,या चातक पक्षी की प्यास……
…..या सिर्फ मौसम की करवट

…..या प्रकृति की अनूठी मुस्कान|

2 comments:

Sunil Kumar said...

bahut sundar badhai

Shilpa Agrawal said...

protsaahan ke liye dhanyawaad Sunil ji!