Monday, November 5, 2012

खुशियों की धूप


सूरज के घर जाकर ,
ले आये हम उजाला |
 पंछियों से पूछा  तिनकों का पता,
अपना बसेरा  बनाने के लिये |
की  चाँद की चिरौरी,
चाँदनी को घर बुलाने के लिये|
तकी सितारोँ की राह ,
अपना घरौंदा  सजाने के लिये |
चले  थकन की पगडण्डियों पर,
चौबारे के बरगद की छाँव पाने   के लिये |
गये किरणों के रथ पर चढ,
आँगन में खुशियों की धूप लाने के लिये |
अब दो गुलाब खिले हैं ,
मेरे आँगन में|
सूरज सुबह ही उजाला पँहुचा जाता है उन्हें ,
पंछी सुबह-शाम बतियाते हैं उनसे ,
चाँद मुस्काता  है देखकर उन्हें ,
चाँदनी  लोरी सुनाती  है हर रात ,
बरगद हँस- हँस के दोहरा हुआ जाता है ,
किरणों का रथ सवारी कराता है उन्हें ,
और खुशियों की धूप से महक उठते हैं ,
मेरे दोनों गुलाब |
मैं देती हूँ उन्हें बस खाद-पानी 
और वो बुला लाते हैं,
सूरज, चाँद , सितारे ,
बरगद की छाँव ,
पंछियों का चहकना ,
..... और खुशियों की धूप 

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