उम्र के बोझ तले, पीले सांचे में ढले ,
पन्ने कुछ अधखुले, आज यों खुले ,
सूखे गुलाबों की बासी खुशबू समेटे ,
वक़्त से पिछड़, कल को आज में लपेटे,
कागज़ के तुड़े-मुड़े पुर्जे छुपाये हुये,
जाने कितने राज़ सीने में दबाये हुये,
भीगे मौसमों की स्याही फैलाये हुये,
अश्कों के निशान, गालों पर सजाये हुये,
कनखियों की आड़ बनाए हुये ,
कुछ बिखरी ज़ुल्फ़ें चुराये हुये,
उसी छुवन का अहसास दिलाते हुये,
उसी जनवरी सा कँपाते हुये
भूली-बीती याद दोहराए गये ,
शब्द -शब्द ग़ज़ल बनाए गये ,
बरसों बाद खुले कुछ यों ,
.... पुरानी किताबों के पन्ने |
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