Saturday, November 3, 2012

मच्छरजी की दिल्लगी


हमारे एक मित्र Entomologist हैं, अर्थात कीट-विज्ञान शास्त्री|एक दिन उनसे मिलने के लिये हम उनकी लैबोरेट्री  पँहुच गये| डेंगू जैसी प्राणघातक  बीमारी फैलाने वाले जीव के विषय में जानने की इच्छा प्रकट करने पर उन्होने हमें एक किस्सा सुना कर टरका दिया| हमने सोचा ज्ञान नही बाँट सकते तो क्या वो किस्सा ही आपको सुना देते हैं|

एक स्लाइड पर एक मच्छर की निष्प्राण काया को रख हमारे मित्र जाने किस ख्याल में डूबे हुए थे|
हमने उन्हे चेताया , अरे भाया, इस तुच्छ मच्छर ने सारे भारत में है आतंक फैलाया, इतने पर भी उन्हें कुछ समझ में ना आया, और उन्होने उस मच्छर का दुखङा हमें कुछ यों सुनाया, जिसे सुन हमें भी बेचारे मच्छर की किस्मत पर रोना आया| 
तो किस्सा कुछ यों है–

कालेज में मलेरिया ,डेंगू ,कालेरा जब पढा रहे थे लेक्चरार |
उसी समय बेचारे मच्छरजी की मक्खीजी से आँखें हो गयी चार |
इश्क का चढा तेज़ बुखार और दोनो हो गये इक-दूजे के बीमार |
डेटिंग पर अब कहाँ जाया जाए, इस पर किया दोनो ने विचार |
मुनिसिपल्टी के नाले या,पार्क के गड्ढो में किया जाये विहार |
मैकडोनल्ड के कच्ररेदान में खाया, प्रेम से फास्ट-फूड का आहार |
सोचा रिश्ता अटूट हो जाए, अब ये, विवाह को बना आधार|
कुण्डली मिली तो, झट,मच्छर पण्डित को प्रकट किया आभार |
शुभ मुहूर्त की तारीख तय हुई,और दिन तय हुआ सोमवार |
सज-धज कर आयी मक्खी,तन- मन से उसने किया श्रृंगार |
महक रही थी वो ऐसे, जैसे साथ लायी हो अपने नयी बहार |
अँखियों में लक्मे का काजल लगा,छोड़े तीर उसने कई हज़ार |
पर हाय रे किस्मत! पास आते ही हुए धराशायी मच्छर जी हमार |
खोज-बीन की तो पता चला हमको इसका विचित्र कारण यार |
डिओ ना मिला तो मक्खीजी ने ओडोमास क्रीम लगाई बार-बार |
और महकने के लिये,बेचारे मच्छरजी पर किया  अनचाहा वार |
इसलिये कहत हैं बछुवा ,काहू को ना चढे ऐसन प्रीत का बुखार |
बेचारे मच्छरवा की खातिर रोवत है दिल बार-बार, ज़ार-ज़ार हमार |



2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

रोचक पंक्तियाँ...... कुछ अलग सी पर प्रवाह्मयीं

Shilpa Agrawal said...

धन्यवाद मोनिका जी !