Wednesday, December 12, 2012

हिसाब





कुछ घर देखे हैं जहाँ ,
प्यास हमेशा   प्यासी  ,
भूख हमेशा भूखी 
और तन पर पड़े कपड़े ,
अंतर्मन की नग्नता  उघाड़ते  हुए से लगते हैं ।

सब कुछ तो  है उन घरों में 
खूबसूरत ,
करीने से लगा हुआ,
चमकदार ,
बेशकीमती |
सुना है , कुछ चूल्हों से आग छीनकर ,
 और ऊपर वाले का दिया ज़मीर बेचकर, 
 इकठ्ठा किया  है  उन्होंने ये असला ।

हिसाब थोड़ा टेढ़ा है ,
......पता नहीं सौदा महँगा  पड़ा या सस्ता ।

3 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...


दिनांक 30/12/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

Vandana Ramasingh said...

विचारणीय

Shilpa Agrawal said...

Dhanyawaad Yashvant ji aur Vandana ji!