कुछ घर देखे हैं जहाँ ,
प्यास हमेशा प्यासी ,
भूख हमेशा भूखी
और तन पर पड़े कपड़े ,
अंतर्मन की नग्नता उघाड़ते हुए से लगते हैं ।
सब कुछ तो है उन घरों में
खूबसूरत ,
करीने से लगा हुआ,
चमकदार ,
बेशकीमती |
सुना है , कुछ चूल्हों से आग छीनकर ,
और ऊपर वाले का दिया ज़मीर बेचकर,
इकठ्ठा किया है उन्होंने ये असला ।
हिसाब थोड़ा टेढ़ा है ,
......पता नहीं सौदा महँगा पड़ा या सस्ता ।
3 comments:
दिनांक 30/12/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
विचारणीय
Dhanyawaad Yashvant ji aur Vandana ji!
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