Tuesday, April 23, 2013

ख्वाहिशों वाली मशीन


ख्वाहिशों वाली मशीन
जाने कहाँ से बनवाता है ऊपरवाला,
कल-पुर्जे चुकते नहीं उसके,
और बैट्री चलती रहती है लगातार ,   
बिना रुके , बिना वियर एंड टियर के    
एक के बाद एक दागती है ये, 
नयी ख़्वाहिशें,और हर नयी को 
झोली में डाल, दौड़ती-फिरती है ज़िन्दगी ,

नापती हुई सुबह से शाम तक  का सफ़र |


और हम नींद में , जाग में,
घूमते हैं चकरघिन्नी से,
पीछॆ इन ख्वाहिशों के   ,
फिर पूरी हुयी ख्वाहिश को
 बुरी नजर से बचाने का नज़रबट्टू लगा,
 दौड़ते हैं नयी के पीछॆ |

वैसे तो ये जो ख्वाहिशों वाली मशीन है,

बिना ई. एम. आइ के आती है|
 पर हुँह ! कुछ चीज़ें मुफ्त आयें ,
तब भी महँगी ही पड़ती हैं |   
और ये तो कुछ ज्यादा ही महँगी पड़ी| 



     

2 comments:

abhi said...

:) :) हा हा...हम भी यही सोचते हैं!!

abhi said...

आज गूगल पर कुछ खोजते खोजते इस आपकी इस फुलकारी पर आकर रुक गए!अच्छा लगा!!