अजीर्ण में जीवन का राग ,
जादुई रंगों के पात ,
खो कर पाने की बात ,
सतरंगी सौंदर्य सर्वत्र ,
खो कर पाने की बात ,
सतरंगी सौंदर्य सर्वत्र ,
नयी फसल का उत्सव ,
जाड़े के आगमन का नाद
जाड़े के आगमन का नाद
आँगन के अनूठे अलाव,
जुड़ाव और फिर अलगाव,
जुड़ाव और फिर अलगाव,
गिर कर उठने की सीख ,
क्षण-भंगुर माया से प्रीत ,
जीवन-मरण की रीत ,
ना होने में होने का आभास ,
दुःख में सुख का वास ,
बसंत के फिर आने की आस ,
बसंत के फिर आने की आस ,
सुनो पतझड़ ! तुम दार्शनिक से लगते हो |
तुम सूरज की भट्टी में तप,
गिर चुके पत्तों में कुरकुरे हो ,
कितना कुछ कहते, सुनते ,दिखाते ,सिखाते ...
..... दे जाते हो
तुम्हारे आने में जाना निहित है ,
और उस जाने से, आना निश्चित है ,
तुम आरम्भ हो ,
और तुम ही अंत हो
या शायद तुम अनंत हो ....
1 comment:
तुम आरम्भ हो ,
और तुम ही अंत हो
या शायद तुम अनंत हो ....
सम्पूर्ण जीवन का सार इन्ही पंक्तियों में अन्तर्निहित है. शिल्पा जी, आप भी दार्शनिक सी लगती हैं
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