दिसंबर की सुबहें फ़ुरसत के गुज़रे लम्हों को याद कर
ऐ काश की लम्बी साँस खींच दुबक जाती हैं एक बार फिर रजाई खींच कर
ये मुआ अलार्म बार बार बज बज कर याद दिलाता है
वीकडे है आज
सो जाना जी भर कर वीकेंड पर
प्रॉमिस इस बार वीकेंड पर नहीं बजूँगा
और रजाई गुनगुनी सी झप्पी दे, कानों में फुसफुसाती है कि दिसम्बर की सुबहों को नींद बड़ी मीठी आती है,
बजने दो मुए अलार्म को, इसका तो काम ही बजना है
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