लाल चूड़ियों से सजी कलाई,
अंतिम विदा भी ना कह पाई ,
दूध पीता नौ- निहाल बैठना सीखा तो ,
पिता के काँधे की सवारी मिल न पाई
छड़ी टूटी, आँख धुँधली, पर हिम्मत न टूटी
बूढ़े कन्धों को इस उम्र में भी बेफिक्री मिल न पाई
लोरियाँ धमाकों के बीच सिसकती रहीं
राह ताक -ताक सूनी ममता पथराई
वीर की परिणिता बनी जो,
उस वीराँगना का सिंगार अमिट
शौर्य- पथ पर प्रशस्त करे जो पूत को,
कोर में आंसू छुपाए उस माँ का साहस अद्वित
सीना ताने सलामी दे जो तिरंगे में लिपटे लाल को ,
उस पिता का धीर देश की प्राचीर चिन्हित
ध्यान रहे अब !
व्यापार न कोई कर पाए, शहीदों के बलिदान पर
बिलख रहा बचपन जो, मिले उसे सम्मान हर ,
काश! बाँटने की राजनीति ख़त्म हो ये,
और जोड़ने की नयी रीत चलन में चल जाए
पत्थरों और धमाकों का शोर खत्म हो वादियों में,
शिकारे चलें और गुलमोहर खिलखिलायें|
जय हिन्द इधर से बोलो तो उधर वादियोँ से भी हिन्दोस्तान ज़िंदाबाद की आवाज़ आये
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