Friday, May 4, 2018

जाओ रे ज़ुकाम

नाक रगड़ कर,
कान पकड़ कर,
जाड़ा  जकड़  कर,
अकड़ -अकड़ कर ,
अकड़ गया है मरा ज़ुकाम ।

टप - टप ,टप- टप आँख टपकती
सूँ -सूँ ,सूँ- सूँ  नाक सुबकती ,
सीधी - सादी साँस अटकती ,
नींद बेचारी की रात को बंद है दुकान ।

गले का गलियारा हो गया है तंग,
बद-मिजाज़ मौसम से हार  कर जंग ,
नाक -निकम्मी का सुर्ख पड़ा है रंग ,
सिर सरकारी के भी अच्छे नहीं है ढंग ,

मुँह से साँस लेने का होठों को जुर्माना  पड़ा है ,
भूख का परदेस का वी.आई. पी वीज़ा लगा है,
ज़बान मरी नखरे दिखाती ,
ताज़े को भी बासी बताती ,
खाँस -खाँस कर आवाज़ ख़राशी ,
छींकें थकती नहीं करके फेफ़ड़ों की तलाशी

अदरक, तुलसी, चाय सब हुई नाकाम,
हाथ जोड़े ,नाक रगड़ी
बस करो जाओ रे ज़ुकाम!
बहुत कर लिया तुमने जीना हराम
छोड़ो पीछा बाँधो अपना सामान ।

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