चल रे मन
बतिया ले खुद से ,
मत डर ,
दुनिया के डर से ।
घबराए, धमकाए
अँधेरा जब ,
निराशा भर कर,
संग लाये जब ,
पलट कर, घूम कर ,
धकिया दे उसको ,
गहरी साँस खींच कर भीतर ,
फूँक मार उड़ा दे उसको ।
चल रे मन
बतिया ले खुद से ,
मत डर ,
दुनिया के डर से ।
अकेलापन जब घर कर जाए तुझमे ,
खुद को खुद का साथी बना ले तब तू ,
घूमती नदियों, ऊँचे पहाड़ों की कहानी सुना ले तब तू ,
बंद कर आँखें ,
सारी दुनिया खुद को खुद से घुमा ले तब तू ।
चल रे मन
बतिया ले खुद से ,
मत डर ,
दुनिया के डर से ।
बिखरा हो जब आस का तिनका तिनका ,
ना पता हो रात का , ना दिन का ,
समेट कर टुकड़े तब सब तू ,
जोड़ कर बना नीड़ हिम्मत का तू ,
खुद को खुद की सीढ़ी बना रे तब तू ,
चल रे मन
बतिया ले खुद से ,
मत डर ,
दुनिया के डर से ।
राह बंद हो ,
रुकी डगर हो
पगडण्डी को साथी बना ले तब तू
बीन कर राह से कंकड़ों को ,
दिशावान सूरज बन जा रे तब तू
चल रे मन
बतिया ले खुद से ,
मत डर ,
दुनिया के डर से ।
रेगिस्तान सा तपता हो जब,
मृगतृष्णा में भटका हो जब,
थक कर बैठ मत जा रे तब तू ,
कुआँ अपना खोद कर दिखा रे तब तू ,
मीठा पानी बन जा रे तब तू ।
चल रे मन
बतिया ले खुद से ,
मत डर ,
दुनिया के डर से ।
चोट खा हार मत मान जा रे तू ,
सोने सा पिघल मत जा रे तू ,
पहचान खुद को झाँक कर भीतर ,
तू लोहा है ,
लोहे सा डट जा रे अब तू ।
तू लोहा है ,
लोहे सा डट जा रे अब तू ।
1 comment:
Wow
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