कहीं गोद में कहीं उंगली थामे खड़ी होती है
हाथ फैलाये बेबसी में बड़ी होती है ,
भूख स्कूलों -मदरसों के पाठ से बड़ी होती है |
खाली बर्तन, ठन्डे चूल्हों में रखी होती है
टपकती छतों और खाँसती दीवारों में पली होती है ,
भूख अकेलेपन के साथ सदा जुड़ी होती है ।
नाकामियों से नाउम्मीदियों में ,
नाउम्मीदियों से नाराज़गियों में तब्दील हुई होती है ,
आग उगलती भूख इंसानी जज़्बों से बड़ी होती है ।
अँधेरा बुझा स्ट्रीट -लैम्प की रोशनी में पढ़ी होती है ,
बिना चाँद वाली रात पर उगते सूरज के हस्ताक्षर कर रही होती है ,
सफलता की भूख, दुश्वारियां ख़त्म करने की ज़िद पर अड़ी होती है |
घर- परिवार, प्यार-दोस्त यार से दूर,
बड़े शहरों की तंग फुटपाथों पर बेघर पडी होती है ,
भूख सर पर प्यार की छत से बड़ी होती है |
पैबन्दों में सिल -सिल फिर ज़ार -ज़ार घिसी होती है,
मिट्टी के दाम सरे-आम बाज़ार में बार-बार बिकी होती है ,
थिरकती नाचती भूख मान-सम्मान के दस्तूरों से बड़ी होती है |
फाकों से खाकों तक साथ चली होती है ,
मज़हब छुपा कभी मंदिर के प्रसाद में, कभी इफ़्तारी में शरीक हुई होती है ,
भूख राम -रहीम की पहचान से बड़ी होती है ।
सूखे और बाढ़ की साथी होती है ,
क़र्ज़ और परज़ के साथ ताल मिलाती चलती है ,
भूख किसानों के गले में फंदे सी कसी होती है |
भटकाने को कभी, भड़काने को कभी ,
मासूमों के खून से हाथ रंगे होती है
सत्ता की भूख मक्कारियों से भरी होती है ।
तिजोरियों में कभी,
स्विस बैंकों में भरी होती है,
पर भरे पेट वालों की भूख उसूलों से बड़ी होती है ।
हाथ फैलाये बेबसी में बड़ी होती है ,
भूख स्कूलों -मदरसों के पाठ से बड़ी होती है |
खाली बर्तन, ठन्डे चूल्हों में रखी होती है
टपकती छतों और खाँसती दीवारों में पली होती है ,
भूख अकेलेपन के साथ सदा जुड़ी होती है ।
नाकामियों से नाउम्मीदियों में ,
नाउम्मीदियों से नाराज़गियों में तब्दील हुई होती है ,
आग उगलती भूख इंसानी जज़्बों से बड़ी होती है ।
अँधेरा बुझा स्ट्रीट -लैम्प की रोशनी में पढ़ी होती है ,
बिना चाँद वाली रात पर उगते सूरज के हस्ताक्षर कर रही होती है ,
सफलता की भूख, दुश्वारियां ख़त्म करने की ज़िद पर अड़ी होती है |
घर- परिवार, प्यार-दोस्त यार से दूर,
बड़े शहरों की तंग फुटपाथों पर बेघर पडी होती है ,
भूख सर पर प्यार की छत से बड़ी होती है |
पैबन्दों में सिल -सिल फिर ज़ार -ज़ार घिसी होती है,
मिट्टी के दाम सरे-आम बाज़ार में बार-बार बिकी होती है ,
थिरकती नाचती भूख मान-सम्मान के दस्तूरों से बड़ी होती है |
फाकों से खाकों तक साथ चली होती है ,
मज़हब छुपा कभी मंदिर के प्रसाद में, कभी इफ़्तारी में शरीक हुई होती है ,
भूख राम -रहीम की पहचान से बड़ी होती है ।
सूखे और बाढ़ की साथी होती है ,
क़र्ज़ और परज़ के साथ ताल मिलाती चलती है ,
भूख किसानों के गले में फंदे सी कसी होती है |
भटकाने को कभी, भड़काने को कभी ,
मासूमों के खून से हाथ रंगे होती है
सत्ता की भूख मक्कारियों से भरी होती है ।
तिजोरियों में कभी,
स्विस बैंकों में भरी होती है,
पर भरे पेट वालों की भूख उसूलों से बड़ी होती है ।
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