बेटे की पिग्गी बैंक की जमा-पूँजी
और मेरे बचपन की मिट्टी की गुल्लक ,
सिक्के अलग, पर कहानी वैसी ही दोहराते |
जैसे मेरी पंजी, दस्सी, चवन्नी, अठन्नी ,
वैसे उसके डॉलर, क्वार्टर, निकेल, पैनी |
कुछ चमकते नए से, कुछ सकुचाते-पुराने,
कुछ तीन दशकों को ओढ़े, मेरे जन्म के साल के,
पर उनमें कुछ अब भी बिलकुल नए से,
और कुछ मेरे जैसे ही हर दिन पुराने होते से |
कुछ बेटे के जन्म के साल के,
soccer गेम में toss करा,
कभी हेड्स कभी टेल्स की कहानी सुनाते से,
कुछ पुराने हो तजुर्बों पर इठलाते - इतराते से,
कुछ गुल्लक की गुलामी, चमक के पीछे छुपाते हुए |
गुल्लक भी नित नए- निराले किस्से सुनती होगी इनके,
जो कभी गाड़ी से Toll खिड़की या भिखारी की तरफ उछले होंगे,
या कभी मैली हथेली में मजदूरी बन दबे होंगे,
कभी पूजा की थाली या कभी फकीर की दरगाह पर चढ़े होंगे |
कुछ लापरवाही से खो गए होंगे, कुछ अचानक पाये गए होंगे
कुछ एयरपोर्ट पर स्कैनिंग में उपस्थिति दर्ज करा आये होंगे,
जब जेब में अनजाने किसी कोने में छुप आये होंगे |
कुछ पर साल तो पिछला ही गढ़ा है, पर खुरदुरे से हैं
और जंग खाए हुए , पुराने से दीखतें हैं,
शायद मन्नत-मुराद के लिए पानी में डाले गये थे,
और फिर मछली के पेट से निकाले गए थे |
कुछ खुशियों के भागीदार हुए होंगे, कुछ गम में शरीक
और हथेली बदलते हुए गीता, कुरान, बाइबल सबके हुए होंगे मुरीद ।
हर एक ने जाने कितनी हथेली, बटुए, गुल्लक,तिजोरियों को देखा होगा ,
किसी को कुछ पल या कुछ दिन, किसी को बरसों अपनाया होगा ।
रोज नया अहसास बन , सोचो तो, कहाँ से कहाँ चले आये होंगे
इसलिए आज जो इस गुल्लक में हैं ,कल वो ज़रूर पराये होंगे
इस दुनिया की धमनियों में रक्त बन बहते हैं ,
ध्यान से सुनो तो ये सिक्के खनक- खनक, दिलचस्प किस्से कई कहते हैं |
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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