मेरी बेटी के लिए ......
अलंकारों को अलंकृत करती ,
तुझसे ही तो अलंकारों की परिभाषा है
मन-उपवन में सुमन सी खिली तू ,
तुझसे जीवन में कितनी अभिलाषा है
मेरी अपूर्णता को अपनी पूर्णता से पूर्ण करती ,
मेरे पुरातन स्वप्नों की तू नवीन गाथा है
अपनी किलकारी से घर आँगन भरती,
तुझसे ही जीवन सरगम का सा,नी, धा, पा है
मधु-सरिता सी चंचल हो बहती ,
तुझमें ही मेरे बचपन का खाका है
रागों में मेघों के मल्हार सी ,
वर्षा ऋतु की पहली फुहार सी ,
ओस की बूँद की मनुहार सी ,
मंदिर में नुपुर की झंकार सी ,
आनंद वृक्ष की नवीनतम पल्लवी सी ,
मान्या, तू स्वयं एक त्यौहार है
बेटी बन कर तेरा आगमन ,
मेरे वात्सल्य को पुनः अर्थ दे जाता है
2 comments:
बहुत ही खूबसूरत रचना, बिलकुल आपकी बेटी की तरह...
धन्यवाद शाहनवाज़ जी |
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