एक क्यारी में कच्ची सी,
एक पौधा लगा दिया है
जो पावस की बूँदों को,
नन्हीं पत्तियों में समेटता है
झोंकों से हवाओँ के,
लङता कभी, कभी झगङता है
किरणों की पीली छटा में,
अलसाता कभी, कभी निखरता है
ताल को बारिश की,
राग मल्हार समझ थिरकता है
दरारों में मिट्टी की,
अपने भावी आकार बुनता है
पर भूरी उदासी को मिटाने को,
थोङी और हरियाली के स्वप्न रचता है
एक पौधा लगा दिया है
जो पावस की बूँदों को,
नन्हीं पत्तियों में समेटता है
झोंकों से हवाओँ के,
लङता कभी, कभी झगङता है
किरणों की पीली छटा में,
अलसाता कभी, कभी निखरता है
ताल को बारिश की,
राग मल्हार समझ थिरकता है
दरारों में मिट्टी की,
अपने भावी आकार बुनता है
पर भूरी उदासी को मिटाने को,
थोङी और हरियाली के स्वप्न रचता है
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