कितने दर्द कितने किस्से
हर किस्से के कितने कितने हिस्से
सही ग़लत क्या, बताए कौन
आधे बैठे चुप, आधे मौन
बाँटना आसान हो जब
जोड़ने की जुगत लगाए कौन
सियासतें सेक रहीं रोटी अपनी अपनी
तमाशा रोके कौन लाठी खाये कौन
हर किस्से के कितने कितने हिस्से
सही ग़लत क्या, बताए कौन
आधे बैठे चुप, आधे मौन
बाँटना आसान हो जब
जोड़ने की जुगत लगाए कौन
सियासतें सेक रहीं रोटी अपनी अपनी
तमाशा रोके कौन लाठी खाये कौन
2 comments:
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
शिल्पा अग्रवाल जी पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा अच्छा लगा आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग पढ़ रहा था माँ ब्लॉग पर आपकी रचना पढ़ी वही से आपके ब्लॉग का लिंक मिला
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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