Tuesday, January 21, 2020

तमाशा

कितने दर्द कितने किस्से 
हर किस्से के कितने कितने हिस्से 
सही ग़लत क्या, बताए कौन 
आधे बैठे चुप, आधे मौन 

बाँटना आसान हो जब 
जोड़ने की जुगत लगाए कौन 
सियासतें सेक रहीं रोटी अपनी अपनी 
तमाशा रोके कौन लाठी खाये कौन

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

संजय भास्‍कर said...

शिल्पा अग्रवाल जी पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा अच्छा लगा आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग पढ़ रहा था माँ ब्लॉग पर आपकी रचना पढ़ी वही से आपके ब्लॉग का लिंक मिला

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्‍कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com