एक गरम अदरक वाली चाय ,
माँ के बने दस्ताने में थमी हुई
खिड़की से झाँकता, मुस्कुराता ढीठ सा ठूँठ,
रुई के फ़ाहों से हारा, कातर नींबूई सूरज
दिसंबर की सुबहें, अलार्म से चौंककर
ऐसे ही धीमे से शुरू होती हैं
पर फिर ओवरकोट पहन निकल पड़ती हैं,
अदरक वाली चाय को दस्तानों में थामे ही,
सूरज की हिम्मत बढ़ाने,
रुई के फाहों को हराने और
मुस्कुराते ठूँठ को कहने कि
जानी! तुम ऐसे भी बहुत क्यूट लगते हो
1 comment:
एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!
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