जब माने दोषी प्रियजन भी
गर विश्वास स्वयं पर कर सकते हो
जब छाया हो चहुँ ओर गहन अँधेरा ही
गर हो संयम करने का प्रतीक्षा भोर की
गर हो सम्बल लड़ने का गहन तिमिर से,
गर हो इच्छा द्वेष को, प्रेम के आलिंगन में भरने की
गर शब्दों से नहीं, कर्मों से ला पाओ तुम परिवर्तन
गर देख सकते हो तुम स्वप्न निर्माण के,
गर रख सकते हो जय- पराजय को तुला के बराबर पलड़ों पर
गर सत्य बदलता नहीं तुम्हारा दिशा बदलने पर हवा की
गर है शुचिता भूल स्वीकारने की तुममें ,
गर है साधुता भूल सुधारने की तुममें ,
गर हो तत्पर गिरते को उठाने के लिए
गर सफलता करे नमन तुम्हारा, पर तुम रहो नतमस्तक ही
तब सही अर्थों में सफल तुम हो पाओगे
तब सही अर्थों में पुत्र, तुम पुरुष कहलाओगे
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