Tuesday, December 31, 2019

तुम पुरुष कहलाओगे




गर शीश उठा तुम चल सकते हो
जब माने दोषी प्रियजन भी
गर विश्वास स्वयं  पर कर सकते हो
जब  छाया हो चहुँ ओर गहन अँधेरा ही
गर हो संयम करने का प्रतीक्षा भोर की
गर हो सम्बल लड़ने का गहन तिमिर से,
गर हो इच्छा द्वेष को, प्रेम के आलिंगन में भरने की
गर शब्दों से नहीं, कर्मों से ला पाओ तुम परिवर्तन
गर देख सकते हो तुम स्वप्न निर्माण के,
गर रख सकते हो जय- पराजय को तुला के बराबर पलड़ों पर 
गर सत्य बदलता नहीं  तुम्हारा दिशा बदलने पर हवा की
गर है शुचिता भूल स्वीकारने की तुममें ,
गर है साधुता भूल सुधारने की तुममें ,
गर हो तत्पर  गिरते को उठाने के लिए 
गर सफलता करे नमन तुम्हारा, पर तुम रहो नतमस्तक ही

तब सही अर्थों में सफल तुम हो पाओगे
तब सही अर्थों में पुत्र, तुम पुरुष कहलाओगे

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