Tuesday, June 11, 2019

बड़े होते बेटे से

तुम बड़े हो गए थे
जब नन्हें कदम तुम्हारे डगमग़ से चार कदम चले थे
जब छोटी बहन को गोद में ले तुम खिलखिलाकर हँसे थे
जब बस्ता टाँग कँधे पर डरे से तुम स्कूल को चले थे
तुम्हारे
पजामा उल्टा ही सही पहन कर इतराने पर
हाथी बन्दर में भरते रंगों की  सीमा रेखा तय कर पाने पर
उल्टे- पुल्टे से जूते के फीते खुद बाँध कर आने पर,
जोड़, गुणा, भाग के सवाल सब खुद समझ जाने पर
 सहमते हुए फिर बिंदास स्टेज पर भाषण जीत कर आने पर
सीटी बजाना सीख जाने पर
अदरक की चाय या सैंडविच  खुद बनाने पर
बिन मेरे जगाये जग कर तैयार हो जाने पर
स्कूल के बैंड में वायलिन बजाने पर
शीशे के सामने बार बार बाल बनाने पर
या घंटों फोन पर बतियाने पर
और अब घर छोड़ कर कॉलेज जाने पर
लौट कर छुट्टियों में घर आने पर या
अकेले रोड ट्रिप पर जाने पर

मैं कभी डबडबाती आँखों से कभी मुस्कराहट के साथ
तुम्हारी माँ होने पर गर्व करती हूँ
जब तुम सबका मान रखते हो
मैं भी कद में बड़ी हो जाती हूँ
यों ही सम्मान देते- पाते रहना

खूब बड़ो तुम
ये आशीष रहेगा तुम्हारे साथ सदा


1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
रचना शायद इसी को कहते हैं ... लाजवाब ....