Sunday, June 2, 2019

खारापन


कभी छलछलाई आँखें,
नमकीन सा एक नगमा गुनगुना देती हैं ,
कभी उमसती दोपहरी
पेशानी पर पसीना बन कर आती है
के  खारे से शिकवे खुदा से
नमक बन के यों बहते हैं
कभी आँसू  पसीना बन,
कभी पसीना आँसू बन
नमक का क़र्ज़ बारी से अदा  करते हैं

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