प्रेम को पाना कितना सुर- ताल से प्रतिपादित है
संगीतमयी, रोम- रोम को झंकृत करने वाला,
जैसे सारे राग एक साथ बजने लगे हों
.... और उतना ही बेतरतीब है प्रेम का बिखरना
कोई संगीत नहीं, कोई शब्द नहीं |
बस शून्य सा खालीपन, शोर मचाता हुआ
बिना किसी पूर्वाग्रह के आकर बसने वाला
.... छोड़ आना इस खालीपन को ,
एक सुबह सैर करने जाओ तो,
ले आना साथ चेहरे पर सुबह की ओस
चिड़ियों का चहकना, दूब की नमीं
पैरों में चुभ रही रेत को धो देना
और नल से गिरते पानी की टुपुर- टापुर
सहेज लाना साथ
पहन आना किसी अनजान की हँसी कानों में
और ध्यान से सुनना अपने बढ़ते हुए क़दमों की आवाज़
.....सुर- ताल का वापस लौट आना इतना भी मुश्किल नहीं
1 comment:
सुर-ताल की वापसी का यह अंदाज़ अनोखा है
बहुत सुंदर रचना
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