एक माँ के दो पूत,
एक पिता की वो संतान,
फिर क्यों एक हिन्दू कहलाया,
और एक मुसलमान
बरसों एक थाली से खाया,
बरसों एक गीत गुनगुनाया
बरसों एक आँगन में पले बढ़े,
जिसमें कभी गले मिले, कभी झगड़े
आज आँगन वो बँट गया,
अल्लाह-राम की राजनीति में फँस गया
एक पिता को नाम देकर दो ,
दो घरों में बिठाया क्यों ?
उनमें बैठा पिता अब रोये,
क्यों भाई पड़ोसी होए,
दोनों आँगन के कण-कण में वो,
फिर हाकिम से पूछो
नाम देने की ज़रुरत क्यों ?
एक पिता की वो संतान,
फिर क्यों एक हिन्दू कहलाया,
और एक मुसलमान
बरसों एक थाली से खाया,
बरसों एक गीत गुनगुनाया
बरसों एक आँगन में पले बढ़े,
जिसमें कभी गले मिले, कभी झगड़े
आज आँगन वो बँट गया,
अल्लाह-राम की राजनीति में फँस गया
एक पिता को नाम देकर दो ,
दो घरों में बिठाया क्यों ?
उनमें बैठा पिता अब रोये,
क्यों भाई पड़ोसी होए,
दोनों आँगन के कण-कण में वो,
फिर हाकिम से पूछो
नाम देने की ज़रुरत क्यों ?
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